क्यों खबरों में
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रिपोर्ट “Regulating Coal Operations: Environmental and Social Impacts through the Lens of the NGT” 26 अगस्त 2025 को नई दिल्ली में जारी हुई।
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मुख्य बिंदु:
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आने वाले कई वर्षों तक भारत की ऊर्जा में कोयला महत्वपूर्ण बना रहेगा।
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कोयला गंभीर स्वास्थ्य और पर्यावरणीय समस्याएँ पैदा करता है।
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रिपोर्ट ने कोयला खनन क्षेत्रों में समुदाय की भागीदारी और स्वास्थ्य अध्ययनों की मांग की।
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भारत कोयले पर क्यों निर्भर है
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ऊर्जा सुरक्षा
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कोयला भारत की 70% से अधिक बिजली (2022–23) देता है।
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बड़े भंडार (~350 अरब टन) आयातित ईंधनों पर निर्भरता घटाते हैं।
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उद्योगों का सहारा
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कोयला आधारित बिजली इस्पात, सीमेंट, उर्वरक, एल्युमिनियम और रेलवे चलाती है।
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सस्ता और पहले से तैयार ढाँचा
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कोयला संयंत्र बनाने में कम खर्च और लंबी आयु।
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भारत के पास पहले से ही बड़ा रेलवे और परिवहन ढाँचा है।
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लाखों लोगों की नौकरियां
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झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा और पश्चिम बंगाल में कोयला खनन रोजगार देता है।
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तेज़ी से कोयला छोड़ने से कई परिवार प्रभावित होंगे।
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नवीकरणीय ऊर्जा पूरी तरह भरोसेमंद नहीं
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सौर और पवन ऊर्जा बढ़ रही है लेकिन 24x7 बिजली नहीं दे सकती।
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कोयला स्थिर “बेसलोड” बिजली देता है।
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परिवर्तन कठिन है
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भारत के पास पर्याप्त धन, तकनीक और श्रमिकों व समुदायों को सहजता से बदलने की योजना नहीं है।
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पर्यावरण और स्वास्थ्य समस्याएँ
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वायु प्रदूषण
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धूल का स्तर सुरक्षित सीमा से पाँच गुना अधिक (उदाहरण: झरिया, एन्नोर)।
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जल प्रदूषण
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फ्लाई ऐश के रिसाव से नदियाँ प्रदूषित और मिट्टी खराब।
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जंगल और पशु हानि
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खनन से जंगल और वन्यजीव गलियारे नष्ट।
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स्वास्थ्य समस्याएँ
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फेफड़ों की बीमारियाँ, सिलिकोसिस, फ्लाई ऐश और धातुओं से नसों की समस्या।
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जीविका का नुकसान
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खेती, मछली पालन और पशुपालन प्रभावित, जिससे गरीबी और पलायन।
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प्रशासनिक कमजोरियाँ
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प्रदूषण नियम अक्सर नज़रअंदाज़ (उदाहरण: एन्नोर संयंत्र)।
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किसानों को बहुत कम या देर से मुआवजा (उदाहरण: मेजिया, चंद्रपुर)।
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आदिवासी और वनवासी, वनाधिकार अधिनियम (2006) के तहत निर्णयों में ठीक से शामिल नहीं।
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समुदायों को निर्णय लेने में शायद ही वास्तविक आवाज़ मिलती है।
रिपोर्ट में मुख्य सुझाव
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पर्यावरण अध्ययन के साथ स्वास्थ्य प्रभाव आकलन भी जोड़े जाएँ।
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स्थानीय लोगों, एनजीओ और विशेषज्ञों को कोयला परियोजनाओं की निगरानी में शामिल करें।
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स्वतंत्र ऑडिट से नियमित रूप से वायु, जल, मिट्टी और लोगों के स्वास्थ्य की जाँच।
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सरकार सफाई और पुनर्स्थापना को तात्कालिक कार्य माने।
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“न्यायसंगत परिवर्तन” की योजना:
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श्रमिकों की सुरक्षा।
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कौशल प्रशिक्षण।
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वैकल्पिक जीविका के विकल्प।
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आगे का रास्ता
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अन्य ऊर्जा स्रोत बढ़ाना: सौर, अपतटीय पवन और हरित हाइड्रोजन।
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खनन क्षेत्रों के श्रमिकों और परिवारों के लिए न्यायसंगत परिवर्तन कोष बनाएँ।
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परियोजनाओं की मंजूरी में स्वास्थ्य अध्ययन अनिवार्य करें।
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समुदायिक शक्तियों के साथ NGT और प्रदूषण बोर्डों को मजबूत करें।
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कोयला अपशिष्ट का पुनः उपयोग (फ्लाई ऐश से सीमेंट, ईंटें और सड़कें)।
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ऊर्जा परिवर्तन को सहारा देने के लिए G-20, ग्रीन क्लाइमेट फंड और JETP जैसे अंतरराष्ट्रीय फंड का उपयोग।
निष्कर्ष
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आने वाले दशकों में भारत की ऊर्जा के लिए कोयला महत्वपूर्ण रहेगा।
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लेकिन यदि समुदायों को अनदेखा किया गया और नियम कमजोर रहे तो स्वास्थ्य और पर्यावरण की लागत बहुत अधिक होगी।
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भारत को ऊर्जा सुरक्षा, जनकल्याण और जलवायु लक्ष्यों के बीच संतुलन बनाना होगा।